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Thursday 23 July 2020

एक भारत श्रेष्ठ भारत ( भिन्न विचार)

आज का वाक्य :-   मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना
अर्थ :-   जितने मनुष्य हैं, उतने विचार हैं;

यह पंक्ति वायुपुराण के एक श्लोक से ली गयी है जिसका अर्थ आज के युग मे हम सभी को जानना समझना आवश्यक है।

मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना कुंडे कुंडे नवं पयः ।
जातौ जातौ नवाचाराः नवा वाणी मुखे मुखे ।।

जितने मनुष्य हैं, उतने विचार हैं; एक ही गाँव के अंदर अलग-अलग कुऐं के पानी का स्वाद अलग-अलग होता है, एक ही संस्कार के लिए अलग-अलग जातियों में अलग-अलग रिवाज होता है तथा एक ही घटना का बयान हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से करता है । इसमें आश्चर्य करने या बुरा मानने की जरूरत नहीं है ।


Wednesday 22 July 2020

तमसो मा ज्योतिर्गमय

आज का वाक्य :-   

तमसो मा ज्योतिर्गमय

अर्थ:-  अंधकार से प्रकाश की ओर चलो, बढ़ो।

तमसो मा ज्योतिर्गमय का सामान्य अर्थ यह है कि अंधकार से प्रकाश की ओर चलो, बढ़ो। देखा गया है कि मानव इसका गूढ़ार्थ नहीं समझ पाता। कतिपय ऋषि-मुनियों ने समझकर इसका अनुगमन किया और अपने जीवन को कृतार्थ किया है। उनमें बहुतों के नाम लिए जा सकते हैं। अंधकार को त्यागकर प्रकाश के मार्ग पर बढ़ना साधना का अध्याय है। 

Tuesday 21 July 2020

एक भारत श्रेष्ठ भारत ( सुख के साक्षी बने )

आज का वाक्य :-   सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्

अर्थ  :-  सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।

Monday 20 July 2020

एक भारत श्रेष्ठ भारत ( सत्य का सत्यापन)

आज का वाक्य :-    

सत्यम ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात

अर्थ :-  सत्य बोलो और प्रिय बोलो।

पूर्ण श्लोक : सत्यम ब्रूयात, प्रियं ब्रूयात, मा ब्रूयात सत्यम अप्रियम
सत्य बोलना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, सत्य किन्तु अप्रिय नहीं बोलना चाहिये । प्रिय किन्तु असत्य नहीं बोलना चाहिये ; यही सनातन धर्म है ॥

Sunday 19 July 2020

एक भारत श्रेष्ठ भारत ( परम धर्म )

आज का वाक्य :-    सेवा अस्माकं धर्मः।
अर्थ  :-        सेवा हमारा धर्म है।

मनुष्य का परम धर्म दुसरो की सेवा करना ही है । जिसके अंतर्गत माता ,पिता, गुरु,समाज ,छोटे - बड़े ,बुजुर्ग सभी आते हैं।  हमें अपने जीवन को सार्थकता देने के लिए नित नए प्रयास करते रहना चाहिए।

Saturday 18 July 2020

एक भारत श्रेष्ठ भारत ( कर्म में उत्कृष्टता)

आज का वाक्य  :    योगः कर्मसु कौशलम्
अर्थ :     परिश्रम, उत्कृष्टता का मार्ग है



भगवत् गीता में “योग:कर्मसु कौशलम्” अध्याय २ में ५० वें श्लोक में योग की व्याख्या करते हुए भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि:

बुद्धियुक्तो जहातिह उभे सुकृतदुष्कृते।

तस्माद्धोगाय युजयस्व योग:कर्मसु कौशलम्।।

सामान्य अर्थ है कि “कर्म में कुशलता ही योग है”। किंतु यहां पर यह भी विचारणीय है कि पापकर्म भी यथा चोरी,डाका, व्याभिचार भी कुशलता पूर्वक ही संपादित किए जाते हैं,क्या इन्हें भी योग की श्रेणी में रखा जा सकता है।

निश्चित ही हमें यहां योग श्लोक की प्रथम पंक्ति पर विचार करना चाहिए। बुद्धि युक्त हो कर सुकर्म एवं दुष्कर्म को योग से युजयस्व होकर कुशलता पूर्वक कर्म करना चाहिए।

कोई भी कर्म करने से पूर्व योगस्थ होना चाहिए जिससे कार्य की कुशलता में संदेह नहीं रह जाता है। योग पूर्वक किये गये कर्मो के फल के परिणाम की भी चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि वे निष्काम होते हैं

Friday 17 July 2020

एक भारत श्रेष्ठ भारत ( सम्पूर्ण विश्व एक परिवार)

आज का वाक्य :   

वसुधैव कुटुम्बकम्

अर्थ :-    

धरती ही परिवार है (वसुधा एव कुटुम्बकम्)। 
समस्त धरा ही एक परिवार है।

वसुधैव कुटुम्बकम् सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है[1] जो महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है (वसुधा एव कुटुम्बकम्)। यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है।

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ||  ॥ (महोपनिषद्, अध्याय ४, श्‍लोक ७१)

उदारचरितानांतु वसुधैव कुटुम्बकम्। ।

वसुधैव कुटुंबकम  एक और पूरी वसुधा अर्थात हमारी पृथ्वी को एक परिवार के रूप में बांध देता है वही यह भावनात्मक रूप से मनुष्य को अपने विचारों और कार्यों के प्रभाव को विस्तृत करने की बात कहता है। वसुदेव कुटुंबकम् हमारे हिंदू धर्म जिसे सनातन धर्म भी कहते हैं का मूल मंत्र है। हमारे धर्म में हीं नहीं यह हमारे भारतवर्ष के संस्कार का द्योतक है। विश्व के स्तर पर हम भारतीयों की विचारधारा का यह मूल है। वसुदेव कुटुंबकम् महा उपनिषद व कई अन्य ग्रंथों में लिखा हुआ है। इसका शाब्दिक अर्थ है धरती ही परिवार है।